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Kerala High Court On Liquar Policy: केरल उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह सिर्फ इस बात को लेकर चिंतित है कि अगली पीढ़ी को शराब के ठेकों के बाहर लंबी कतारों में नहीं खड़ा होना पड़े. साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार को राज्य में इस तरह के ठेकों की संख्या बढ़ाने के बारे में किसी भी तरह की न कोई अनुमति दी है और ना ही उन्हें ऐसा करने से रोका है.न्यायमूर्ति दीवान रामचंद्रन ने कहा, ‘‘हमें अगली पीढ़ी को बचाना है. मैं नहीं चाहता कि वह इस तरह से कतार में खड़ी हो.”

उन्होंने कहा कि यही कारण है कि वह बार-बार सरकार से कह रहे हैं कि शराब ठेकों पर ‘वाक-इन’ सुविधा हो.अदालत ने कहा, ‘‘हम नहीं चाहते कि लोग शराब ठेकों के बाहर लंबी कतारों में खड़े हों और वहां अफरातफरी पैदा करें और वह लोगों के लिए खासतौर पर महिलाओं और बच्चों के लिए इस तरह के स्थानों से गुजरना असंभव कर दें. ’’

अदालत ने दो पुनर्विचार याचिकाओं का भी निस्तारण किया, जिनमें एक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं केरल विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष (स्पीकर) वी. एम. सुधीरन की थी. सुधीरन ने राज्य में शराब ठेकों की संख्या बढ़ाये जाने का विरोध किया था. ठेकों की संख्या बढ़ाने का सुझाव आबकारी आयुक्तालय एवं पेय पदार्थ निगम (बेवको) ने दिया था. अदालत ने कहा कि दोनों याचिका स्वीकार किये जाने योग्य नहीं हैं.

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि 2017 के उसके फैसले के बाद चार साल तक और कोविड-19 महामारी के दौरान शराब ठेकों पर अत्यधिक भीड़ होने के समय कोई भी अदालत नहीं आया.अदालत ने कहा कि अब सिर्फ एक प्रस्ताव लाने का विचार किया गया है और लोग पुनर्विचार याचिकाओं के साथ आ रहे हैं.अदालत ने कहा कि 2017 के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाली दोनों याचिकाएं असल में इसका समर्थन कर रही है.

याचिकाओं में दलील दी गई है कि उच्च न्यायालय के 2017 के फैसले में राज्य सरकार और बेवको को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था कि शराब ठेकों के बाहर किसी इलाके के कारोबार और निवासियों को समस्या नहीं हो, लेकिन राज्य में शराब ठेकों की संख्या बढ़ाने के लिए इसे एक अलग तरीके से परिभाषित किया गया.

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