[ad_1]

Election Campaign In Corona Period: महामारी बनकर आया कोरोना (Corona) दुनियाभर की सरकारी व्यवस्थाओं का सिरदर्द तो बना ही है, लोकतांत्रिक सरकारों के लिए चुनावी (Election) चुनौती भी बना है. भारत (India) अकेला देश नहीं है जहां जनवरी 2020 यानि कोरोना की आमद के बाद से चुनाव हुए. दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका (America) हो या सबसे छोटा लोकतंत्र सिंगापुर (Singapore), क़ई जगह चुनाव हुए और कोरोना पाबंदियों के बीच प्रचार अभियान भी हुए. हालांकि यह सच है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था की समानताओं के बावजूद, भारत आकर और जनसंख्या के लिहाज से दुनिया में अनोखा देश है. यहां चुनाव और प्रचार की चुनौतियों का कोई तुलनात्मक मॉडल तलाशना बेहद मुश्किल है.

फिर भी, कोरोना के खतरनाक ओमिक्रोन वेरिएंट की आमद और भारत में सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे उत्तर प्रदेश में होने जा रहे चुनावों के मद्देनज़र यह सवाल लाज़िमी है कि आखिर चुनावी प्रचार का पुराना ढर्रा क्या इतना ज़रूरी है? क्या उन मतदाताओं की जान से भी ज़्यादा ज़रूरी जिनके हितों का वादा कर नई सरकार बनाई जानी है? इन सवालों के बीच दुनिया की किताब में कोविड काल में मिले अनुभवों के पन्ने पलटे का सकते हैं.

सो, एक नमूना उभरता है दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र आमेरिका से जहां साल 2020 में राष्ट्रपति चुनाव हुए. कोविड19 की खराब स्थितियों के बीच हुए इन चुनावों में एक तरफ तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारी भीड़ के साथ रैलियां कर रहे थे. वहीं उनके मुकाबले में खड़े डेमोक्रेटिक पार्टी उम्मीदवार जो बाइडन और उनकी सहयोगी कमला हैरिस ने कोरोना संकट का हवाला देते हुए छोटी रैलियों और फोन तथा सोशल मीडिया कैंपेन का सहारा लिया. बहरहाल नतीजे सामने आए तो जीत का नतीजा कोरोना नियमों से प्रचार करने वाली टीम बाइडन के पक्ष में रहा.

इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस की एक रिपोर्ट के अनुसार, सिंगापुर, क्रोएशिया, मलेशिया, अमेरिका, रोमानिया, जॉर्डन समेत अनेक देशों की सरकारों ने अपने यहाँ चुनावी प्रचार प्रक्रिया पर कोविड संबंधी नियंत्रण लगाए. सिंगापुर ने तो जुलाई 2020 में हुए संसदीय चुनाव में प्रचार रैलियों पर ही रोक लगा दी. वहीं जॉर्डन ने नवम्बर 2020 से पहले जहां बड़ी रैलियों पर रोक लगाई वहीं चुनावी सभाओं में 20 लोगों की संख्या भी निर्धारित कर दी थी.

एक अन्य संस्था OSCE ODIHR के अनुसार कोरोना काल में हुए चुनावों के दौरान ऐसे भी क़ई देश रहे जहां पाबंदियां तो लगाई गईं लेकिन उनका पालन नहीं हुआ. रिपोर्ट के अनुसार पोलैंड में दूसरे चरण के मतदान से पहले उम्मीदवारों ने कोरोना प्रतिबांधों को ताख पर रख धड़ले से रैलियां की. इसी तरह मलेशिया के सबाह सूबे के चुनावों में इलेक्शन कमीशन की तरफ से दी गई कोरोना सम्बन्धी गाइडलाइंस कोरोना नियमों का पालन नहीं किया गया.

बाद में मलेशिया के प्रधानमंत्री ने भी अक्टूबर 2020 में माना कि कोरोना मामलों में हुई बढ़ोतरी का कारण चुनावी रैलियां भी हो सकती हैं. मलेशिया के सूबाई चुनाव के बाद 10 राजनेता और तीन चुनाव अधिकारी कोरोना पॉज़िटिव हो गए थे. मीडिया रिपोर्ट्स क़ई मानें तो ब्राज़ील में नवम्बर 2020 के चुनावों के दौरान करीब 20 उम्मीदवारों की कोरोना से मौत हो गई थी.

इस दौरान खाड़ी देश कुवैत ने चुनावी सभाओं यानि दीवानिया पर पाबंदियाँ लगाई.मगर प्रचार के लिए ट्विटर, यूट्यूब, व्हाट्सएप, ज़ूम जैसे सोशल मीडिया और वर्चुअल साधनों का खूब इस्तेमाल किया गया. अमेरिका में भी प्रचार के दौरान सोशल मीडिया के साथ साथ मेलर और टेलीमार्केटिंग तकनीकों का भी खूब इस्तेमाल हुआ. इतना ही नहीं अमेरिका ने मतदान के लिए पोस्टल मतों का भी रिकॉर्ड उपयोग किया. हालांकि सत्ता से बाहर हुए राष्ट्रपति ट्रम्प उसको लेकर आज भी साजिशों के आरोप लगाते हैं.

[ad_2]

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *