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फिल्म ‘छावा’ में विक्की कौशल
– फोटो : अमर उजाला
‘बड़े नाउम्मीद होकर तेरे कूचे से हम निकले…’
तीन हफ्ते पहले जब फिल्म ‘छावा’ का ट्रेलर रिलीज हुआ था तो दोस्तों से शर्त लगा ली थी कि यह विक्की कौशल के करियर की सबसे बड़ी हिट साबित होगी पर आज तब थिएटर से बाहर निकला तो लगा जैसे किसी ने तीन मिनट की बेहतरीन क्लिप दिखाकर ढाई घंटे तक सुन्न बैठाकर बुरी तरह ठग लिया हो।
आखिर कैसी है कहानी?
फिल्म शुरू होती है छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन से। जहां एक तरफ मुगल जश्न मना रहे हैं कि अब वो दक्खन पर कब्जा कर लेंगे, वहीं शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज उनके जश्न को मातम में बदलने अपनी सेना लेकर पहुंच जाते हैं। संभाजी, मुगलों की शान बुरहानपुर में ऐसी तबाही मचाते हैं कि मुगल बादशाह औरंगजेब उन्हें पकड़कर तड़पा-तड़पाकर मारने की कसम खाता है। औरंगजेब का यह सपना पूरा होने में नौ साल लगते हैं और इसी पूरे दौर की कहानी को निर्माता–निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने पर्दे पर पेश किया है।

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रश्मिका मंदाना और विक्की कौशल के साथ डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर
– फोटो : इंस्टाग्राम @rashmika_mandanna
कैसा है निर्देशन?
बीते दो दशकों में ऐतिहासिक युद्ध की पृष्ठभूमि पर कुल छह फिल्में रिलीज हुई हैं। इसमें ‘जोधा अकबर’, ‘बाजीराव मस्तानी’, ‘पद्मावत’ और ‘तान्हाजी’ सफल रहीं जबकि ‘पानीपत’ और ‘सम्राट पृथ्वीराज’ को किसी ने पानी तक नहीं पूछा। इन सभी फिल्मों को अगर निर्माता–निर्देशक लक्ष्मण उतेकर एक बार देख भर लेते तो उन्हें पता होता कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। ऐसा लगता है जैसे सेट पर की गई पूरी मेहनत को लक्ष्मण ने खुद अपने हाथों से मिट्टी कर लिया और फिर एडिटिंग टेबल ले जाकर उस पर पानी डाल दिया। मराठी वीर योद्धाओं की कहानियां अपने आप में बेमिसाल होती हैं और लक्ष्मण उतेकर को सिर्फ इसे खूबसूरती से कड़ी से कड़ी जोड़कर पेश करना था, जिसमें वो असफल रहे।
काश वो कुछ नया गढ़ते.. काश वो अक्षय खन्ना, आशुतोष राणा, दिव्या दत्ता और बाकी कलाकारों को थोड़ा और स्क्रीन स्पेस देते। थोड़ा वक्त देते कि उनके किरदार हमारे जेहन में उतर सकें और हम उन्हें महसूस कर सकें। पूरे दो घंटे 35 मिनट तक फिल्म चलती और हम बस उसे देखते हैं और जब भी कोई ऐसा दृश्य आता है जहां हम कुछ महसूस कर सकें तो रहमान का बैकग्राउंड म्यूजिक आपके इमोशंस की बैंड बजा देता है।

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अक्षय खन्ना और रश्मिका मंदाना
– फोटो : इंस्टाग्राम@maddockfilms
कैसी है अभिनेताओं की एक्टिंग
ऐसा नहीं है कि फिल्म में कुछ अच्छा नहीं है। विक्की कौशल ने ‘छावा’ के रूप में अपना बेस्ट दिया है। उन्होंने जो मराठी टोन पकड़ी वो काबिल-ए-तारीफ है। इमोशंस से लेकर एक्शन तक उन्होंने बार-बार इस फिल्म को उठाने की कोशिश की पर एडिटिंग से उनकी एक्टिंग के असर पर भी कैंची चल गई। बाकी कलाकारों में रश्मिका मंदाना ने एक बार फिर हिंदी बोलने की बेहतर कोशिश की है। वो मराठी किरदार में हैं तो उनकी बोली की गलतियां स्वीकार की जा सकती हैं।
दिव्या दत्ता को कुल मिलाकर तीन सीन और दो डायलॉग दिए हैं जिसमें उन्होंने कोई कमी नहीं छोड़ी। आशुतोष राणा और विनीत सिंह ने विक्की का बेहतरीन साथ दिया है। विनीत ने एक बार फिर बताया कि उनकी प्रतिभा में नहीं बल्कि निर्देशकों की आंखों में ही कुछ कमी है जो उनसे बेहतर काम नहीं निकलवा पाते।
अक्षय खन्ना को ट्रेलर में देखकर जितना डर लगा था उतना फिल्म में देखकर हंसी आती है। वो या तो चुप रहते हैं या फिर अंगूर खाते हुए धीमी आवाज में आदेश देते हैं। फिर साेचा कि कुछ कर तो असल में औरंगजेब भी नहीं पाए थे तो अक्षय खन्ना भी क्या करते?

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छावा के एक सीन में विक्की कौशल
– फोटो : Youtube @Maddock films
आखिर कहां कमजोर हो गई फिल्म?
फिल्म इतनी तेजी से भागती है कि आपको स्वराज्य के मतवालों की जीत का जश्न मनाने का भी मौका नहीं मिलता। एक सीन इमोशनल, फिर एक सीन एक्शन और फिर उसी बीच में फ्लैशबैक जो आपको कहीं कन्फ्यूज कर देता है तो कहीं-कहीं आपका फ्लाे भी बिगाड़ देता है। वहीं कुछ दृश्य तो साेच से परे हैं।
जैसे एक सीन में विक्की कौशल शेर से भिड़ते हैं। सीन का वीएफएक्स तो जबरदस्त है पर एक पल में विक्की को तहखाने में शेर का जबड़ा पकड़े दिखाते हैं और अगले ही पल वो बाहर आकर दुश्मन की गर्दन पकड़ लेते हैं।
फिल्म के एक सीन में तो जब अकबर बने नील भूपलम, विक्की से मदद मांगने आते हैं तो विक्की उनकी गर्दन कुछ यूं पकड़ते हैं जैसे उन्हीं की सेना का कोई गुप्तचर हो। महाराज की शहजादे से मुलाकात वाले इस दृश्य का चित्रण अटपटा सा लगा।
फिल्म के कुछ सीन वीभत्स हैं जो कमजोर दिल वाले नहीं देख पाएंगे। क्लाइमैक्स देखकर दुख यह होता है कि सबकुछ अच्छा बनाया गया, बस मेकर्स उसे अच्छे से पेश नहीं कर पाए। न जाने ऐसी क्या हड़बड़ी थी कि न किरदारों को बिल्ट अप हाेने दिया और न ही इमोशंस को। रही सही कसर बैकग्राउंड म्यूजिक ने पूरी कर दी। आधी फिल्म में सीन कुछ और है.. और म्यूजिक कुछ और ही।

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फिल्म में विक्की काैशल ने छत्रपति संभाजी महाराज का किरदार निभाया है।
– फोटो : इंस्टाग्राम @maddock films
कहां है फिल्म में दम?
फिल्म का वीएफएक्स, सेट, कॉस्ट्यूम और डायलॉग्स सब कुछ बढ़िया है। एक्शन सीन भी खूबसूरत हैं पर इनकी अतिशयोक्ति से कुछ देर बाद आप खीझ जाएंगे। शायद, इस फिल्म को शायद साउथ का कोई निर्देशक पेश करता तो बेहतर ग्लोरिफाई कर पाता। फिल्म का क्लाइमैक्स थोड़ा इमोशनल है और वहां इमोशंस फील होते हैं पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। फिल्म में जब-जब टुकड़ों में कुछ अच्छे सीन देखने को मिलते हैं तो आपको निराशा होती है कि इसे और बेहतर बनाया जा सकता था। यह ‘सम्राट पृथ्वीराज’ जितनी खराब नहीं है पर ‘बाजीराव मस्तानी’ जितनी खूबसूरत भी नहीं है।