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Donald Trump – फोटो : PTI
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आधी सदी पुराने रिश्वत रोधी कानून पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है। गौरतलब है कि इसी कानून के तहत बाइडन सरकार ने भारत के अदाणी समूह के खिलाफ कार्रवाई की थी। विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (एफसीपीए), जिस पर ट्रंप प्रशासन ने रोक लगाई है, वह अमेरिका से जुड़े फर्मों और लोगों को विदेश में अपने व्यापार को सुरक्षित करने के लिए विदेशी अधिकारियों को पैसे या उपहार या किसी भी तरह की रिश्वत देने से प्रतिबंधित करता है।
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कानून की आलोचना करते हुए क्या बोले ट्रंप
गौरतलब है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान भी इस कानून पर रोक लगाने पर विचार किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ट्रंप ने एफसीपीए कानून को लेकर कहा कि ‘यह कानून कागजों पर तो अच्छा लगता है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर यह बेहद खराब है। इस कानून के मुताबिक अगर कोई अमेरिकी किसी दूसरे देश में जाकर वहां कानूनी, वैध या किसी अन्य तरह से व्यापार करना चाहता है तो उसे इस कानून के मुताबिक निश्चित तौर पर जांच, अभियोग का सामना करना होगा और कोई नहीं चाहता कि उसके साथ ऐसा हो।’
उल्लेखनीय है कि पिछले बाइडन प्रशासन में अमेरिका में अदाणी समूह के खिलाफ जो अभियोग किया गया था, वह भी इसी कानून के तहत किया गया था। अदाणी समूह पर आरोप लगा था कि उसके कुछ अधिकारियों ने भारत में सौर ऊर्जा संबंधी ठेके लेने के लिए भारतीय अधिकारियों को 25 करोड़ डॉलर की रिश्वत दी थी। हालांकि अदाणी समूह ने बाइडन सरकार के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था।
व्हाइट हाउस ने बयान में कही ये बात
व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी कर कहा कि एफसीपीए कानून अमेरिकी नागरिकों और इसके व्यापार के खिलाफ था। इसके जरिए हमारी ही सरकार दूसरे देशों की सामान्य व्यापार गतिविधियों में अपने सीमित अभियोजन संसाधनों को बर्बाद करती है, साथ ही अमेरिकी आर्थिक प्रतिस्पर्धा और राष्ट्रीय सुरक्षा को भी इससे नुकसान होता है। बयान में कहा गया कि ट्रंप प्रशासन व्यापार में ज्यादा से ज्यादा बाधाओं को समाप्त करना चाहता है। अमेरिकी सरकार के इस फैसले के बाद अदाणी समूह के शेयरों में उछाल देखा गया है।
गौरतलब है कि अमेरिका के छह सांसदों ने भी हाल ही में अटॉर्नी जनरल पाम बोन्डी को पत्र लिखकर कहा था कि न्याय विभाग द्वारा पूर्व की गई कार्रवाई न सिर्फ गुमराह करने वाली थी बल्कि इससे अमेरिका के भारत जैसे अहम सहयोगी देशों के साथ रिश्ते भी खराब हो सकते थे। सांसदों ने इसे बाइडन सरकार का बेवकूफी भरा फैसला बताया था।